ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
फटी धरती की एक दराड़ में यह नन्ही सी कोंपल कैसी?
यह इतने अंधेरों में रोशनी की हल्की सी किरण कैसी?
यह हरियाली कैसी, जो धरती का सीना चीर कर अपने हरे पत्ते फैलाये बाहर झांकना चाहती है?
यह मौत के दामन में जीवन की चमक कहाँ से आ गयी, कि अब मरा भी न जायेगा?
सोचा था कि खुद को मिटा दिया जायेगा तो सारे झगडे़ आप ही आप निबट जायेंगें।
परन्तु इस नन्ही-सी कोंपल ने यह कैसे दामन थाम रखा है?
आह, एक जीवन की एक चिंगारी, इतनी राख और मौत के इतने फैलाव में तुझे बचा भी कैसे पाऊँगी? बचा भी कैसे पाऊँगी?
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इस एक आस ने मरने भी तो न दिया।
जीवन दुख का बन्धन है।
जीवन मौत की ही परछाई है।
परन्तु मौत के हाथों हारता नहीं। मौत के सीने में भी जीवन की एक चमक होगी कि वह खुद इस तरह जीवित रहती है औऱ अपना दामन फैलाये रहती है।
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