लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


राजलक्ष्मी के शारीरिक गठन में बाहुल्य-भार कभी नहीं हुआ और फिर संयम तथा उपवास ने उसे मानो लघुता की एक दीप्ति दान दी है। विशेषकर आज उसकी साज-सज्जा कुछ विचित्र ही है। भोर होने के पहले ही वह स्नान कर आई है, गंगाघाट के उड़िया पण्डे का यत्नपूर्वक लगाया हुआ तिलक उसके मस्तक पर है, कत्थई रंग की फूल-फल तथा बेल-बूटों से चित्रित वृन्दावनी साड़ी पहन रक्खी है, शरीर पर वे ही कुछ थोड़े-से गहने हैं, मुख पर स्निग्धा प्रसन्नता है, और अपने काम में तल्लीन है। कल लम्बे आईने लगीं दो आलमारियाँ खरीद लाई थी, आज जाने से पूर्व उनमें जल्दी-जल्दी न जाने क्या रख रही है। काम करते-करते उसके हाथों के कड़ों की शार्क मछली की आँखें बीच-बीच में चमक उठती हैं, गले में पड़े हुए हीरे-पन्ने की जड़ाऊ हार की विभिन्न वर्णच्छटा किनारी के व्यवधान में से झलक उठती है। उसके कानों के पास से भी एक नीली आभा निकल रही है। मेज पर चाय पीने बैठकर मैं एकटक उसी ओर देख रहा था। उसमें एक दोष था, घर में वह जाकेट ब्लाउज नहीं पहिनती थी, अतएव जरा असावधान होने पर उसकी गर्दन तथा बाहु का बहुत-सा अंश अनावृत हो पड़ता था। यदि इसके लिए कहा जाता तो वह हँसकर कहती- बाबा, मुझसे यह सब नहीं हो सकता। मैं ठहरी गाँव की औरत, मुझे दिन-रात बीबियाना ठाठ नहीं सुहाता। अर्थात्, हम शुचि-वायुग्रस्त जीवों के लिए कपड़ों का ज्यादा पहिनना परेशानी का काम है। आलमारी का पलड़ा बन्द करते हुए एकाएक आईने में उसकी दृष्टि मुझ पर पड़ गयी। शीघ्रता से साड़ी सँभालकर वह मेरी ओर घूमकर खड़ी हो गयी और नाराज होकर बोली, “फिर भी ताक रहे हो? अबकी बार-बार मुझे इतना क्यों ताक रहे हो, कहो तो?” और कहकर ही वह हँस पड़ी।

मैं भी हँसा, बोला, “सोच रहा था कि विधाता को फरमाइश देकर न जाने किसने तुम्हें गढ़वाया था।”

राजलक्ष्मी ने कहा, “तुमने। नहीं तो दुनिया से ऐसी निराली पसन्दगी और किसकी हो सकती है? मेरे आने के पाँच-छह वर्ष पूर्व तुम आये थे, और आते समय उन्हें बयाना दे आये थे। याद नहीं है क्या?”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book