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श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719

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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


“और वहाँ खाया क्या?”

“कुछ भी नहीं खाया। इच्छा भी नहीं हुई।”

जाने क्या सोचकर नजदीक आकर उसने मेरे सिर पर हाथ रक्खा, फिर वही हाथ कुर्ते के भीतर मेरी छाती के नजदीक डालकर कहा, “जो सोचा था ठीक वही है। कमल दीदी, देखो तो इनका शरीर गरम मालूम नहीं पड़ रहा है?”

कमललता व्यस्त होकर उठी नहीं। बोली, “जरा-सा गरम हो गया तो क्या हुआ राजू-डर क्या है?”

वह नामकरण करने में अत्यन्त पटु है। यह नया नाम मेरे कानों में भी पड़ा।

राजलक्ष्मी ने कहा, “इसके मानी ज्वर जो है दीदी!”

कमललता ने कहा, “अगर ज्वर ही हो तो तुम लोग पानी में नहीं आ पड़ी हो? हमारे पास आई हो, हम ही इसकी व्यवस्था कर देंगे बहन- तुम्हें फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं।”

अपनी इस असंगत व्याकुलता में दूसरे के अविचलित शान्त कण्ठ ने राजलक्ष्मी को प्रकृतिस्थ कर दिया। शर्मिंदा होकर उसने कहा, “अच्छी बात है दीदी, पर एक तो यहाँ डॉक्टर-वैद्य नहीं हैं, फिर हमेशा देखा है कि यदि इन्हें कुछ हो जाता है, तो जल्दी आराम नहीं होता- बहुत भोगना पड़ता है। फिर जलमुँहा ज्योतिषी न जाने कहाँ से आकर डर दिला गया...”

“दिला जाने दो।”

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