ई-पुस्तकें >> श्रीकान्त श्रीकान्तशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
337 पाठक हैं |
शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास
“नहीं दीदी, मैंने देखा है कि इनकी अच्छी बातें तो नहीं फलतीं, पर अशुभ बातें ठीक निकल जाती हैं।”
कमललता ने स्मित हास्य से कहा, “डरने की बात नहीं राजू, इस क्षेत्र में उसकी बात ठीक न होगी। सबेरे से ही गुसाईं धूप में घूमते रहे हैं, ठीक वक्त पर स्नान-आहार नहीं हुआ, शायद इसी कारण शरीर कुछ गर्म हो गया है- कल सुबह तक नहीं रहेगा।”
लालू की माँ ने आकर कहा, “माँ, रसोईघर में ब्राह्मण-रसोइया तुम्हें बुला रहा है।”
“जाती हूँ,” कहकर कमललता की तरफ कृतज्ञ दृष्टिपात करके वह चली गयी।
मेरे रोग के सम्बन्ध में कमललता की बात ही फली। ज्वर ठीक सुबह ही तो नहीं गया, पर एक-दो दिन में ही मैं स्वस्थ हो गया। किन्तु इस घटना से कमललता को हमारी भीतर की बातों का पता चल गया, शायद एक और व्यक्ति को भी पता चला- स्वयं बड़े गुसाईंजी को।
जाने के दिन कमललता ने हम लोगों को आड़ में बुलाकर पूछा, “गुसाईं, तुम्हें अपनी शादी का साल याद है?” निकट ही देखा कि एक थाली में देवता का प्रसाद, चन्दन और फूलों की माला रखी है।
प्रश्न का जवाब दिया राजलक्ष्मी ने, कहा, “इन्हें क्या खाक मालूम होगा, मुझे याद है।”
कमललता ने हँसते हुए कहा, “यह कैसी बात है कि एक को तो याद रहे और दूसरे को नहीं?”
राजलक्ष्मी ने कहा, “बहुत छोटी उम्र थी न, इसीलिए। इन्हें तब भी ठीक ज्ञान न था।”
|