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श्रीकनकधारा स्तोत्र

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9723

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लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र


बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः


जो भगवान मधुसूदनके कौस्तुभमणि-मण्डित वक्षःस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में काम (प्रेम) का संचार करने वाली है, वह कमलकुञ्ज वासिनी कमलाकी कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव ।
मातुः समस्त जगतां महनीय मूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः 
6

जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णुके कालीमेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षःस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भावसे भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मीकी पूज्यनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।।6।।

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