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उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729

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राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा


सहजन्या
धुली चाँदनी में शोभा मिट्टी की भी जगती है,
कभी-कभी यह धरती भी कितनी सुन्दर लगती है!
जी करता है यही रहें, हम फूलों में बस जायें!

रम्भा
दूर-दूर तक फैल रही दूबों की हरियाली है,
बिछी हुई इस हरियाली पर शबनम की जाली है।
जी करता है, इन शीतल बून्दों में खूब नहायें।

मेनका
आज शाम से ही हम तो भीतर से हरी-हरी है,
लगता है आकंठ गीत के जल से भरी-भरी है।
जी करता है, फूलों को प्राणों का गीत सुनायें।

समवेत गान
हम गीतों के प्राण सघन,
छूम छनन छन, छूम छनन।
बजा व्योम वीणा के तार,
भरती हम नीली झंकार,
सिहर-सिहर उठता त्रिभुवन।
छूम छनन छन, छूम छनन।
सपनों की सुषमा रंगीन,
कलित कल्पना पर उड्डीन,
हम फिरती हैं भुवन-भुवन
छूम छनन छन, छूम छनन।
हम अभुक्त आनन्द-हिलोर,
भिंगो भूमि-अम्बर के छोर,
बरसाती फिरती रस-कन।
छूम छनन छन, छूम छनन।

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