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उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729

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राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा

भाग - 3


रम्भा
बाहों में ले उड़ा? अरी आगे की कथा सुनाओ।

सहजन्या
यही कि हम रो उठीं, “दौड़ कर कोई हमें बचाओ”

रम्भा
तब क्या हुआ?

सहजन्या
पुकार हमारी सुनी एक राजा ने,
दौड़ पड़े वे सदय उर्वशी को अविलम्ब बचाने।
और उन्हीं नरवीर नृपति के पौरुष से, भुजबल से
मुक्त हुई उर्वशी हमारी उस दिन काल-कवल से।

रम्भा
ये राजा तो बड़े वीर हैं।

सहजन्या
और परम सुन्दर भी।
ऐसा मनोमुग्धकारी तो होता नहीं अमर भी
इसीलिये तो सखी उर्वशी, उषा नन्दनवन की
सुरपुर की कौमुदी, कलित कामना इन्द्र के मन की
सिद्ध विरागी की समाधि में राग जगाने वाली
देवों के शोणित में मधुमय आग लगाने वाली
रति की मूर्ति, रमा की प्रतिमा, तृषा विश्वमय नर की
विधु की प्राणेश्वरी, आरती-शिखा काम के कर की
जिसके चरणों पर चढने को विकल व्यग्र जन-जन है
जिस सुषमा के मदिर ध्यान में मगन-मुग्ध त्रिभुवन है
पुरुष रत्न को देख न वह रह सकी आप अपने में
डूब गई सुर-पुर की शोभा मिट्टी के सपने में
प्रस्तुत है देवता जिसे सब कुछ देकर पाने को
स्वर्ग-कुसुम वह स्वयं विकल है वसुधा पर जाने को।

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