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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग


यूनियन के मेम्बरों की ज़िंदगी वाकई क़ाबिले-रश्क़ थी। इम्तहान के दिन सिर पर आ गए थे। आम छात्रों को गहरी नींद हराम हो गयी थी। रात-की-रात और दिन-के-दिन परिश्रम और अध्ययन के सिवा कोई काम न था। वर्जिश का मैदान, क्लब, लाइब्रेरी सब वीरान पड़े हुए थे। हर उम्मीदवार किसी संन्यासी की तरह समाधि में बैठा हुआ नज़र आता था। जिसे देखिए अपनी कोठरी में समाधि लगाये बैठा है। इस रात-दिन की सोच-विचार और माथा-पच्ची ने सर-दर्द, आँखों में दर्द, अपाचनता, बुखार और अन्य बीमारियों का तूफ़ान बरपा कर दिया है। आँखें फोड़े की तरह दुख रही हैं, मगर किताब हाथ में है। मारे दर्द के सिर फटा जाता है, मगर पेंसिल हाथ से नहीं छूटती। बुखार से बदन तवा हो रहा है, मगर जबान दर्द से मसरूफ़ है। इधर तो ये आफ़तें थीं, उधर यूनियन के मेम्बर चैन की बाँसुरी बजाते थे। कभी गाना हो रहा है, कभी चाय-पार्टी, कभी पिकनिक, जिसे देखिये बेफ़िक्र गुलछर्रे उड़ाता नज़र आता है। किसी को इम्तहान की जरा-सी फ़िक्र नहीं। यहाँ तक कि इम्तहान के दिन आए और यूनियन के भाग्य जाग उठे। कॉलेज के आम छात्र बमुश्किल बीस फ़ीसदी कामयाब हुए। यूनियन के सौ मेम्बरों में सिर्फ़ 25 फेल थे। लोगों को अचंभा हो गया, मगर असल राज किसी की समझ में न आया। वो सुरेंद्र जिसने ख्वाब में भी किताब की सूरत न देखी, अव्वल दर्जा में पास हुआ।

इसी बीच में मिस गुप्ता का तबादला हुआ और मिस रोहिणी सरकार कलकत्ता से उनकी जगह पर आईं। रोहिणी देखने-सुनने में मिस गुप्ता की पूर्णत: अनुरूप थीं, उस पर तुर्रा ये कि कुमारी। सुरेंद्र ने पहली निगाह से अपने शिकार को ताड़ लिया और रोहिणी भी पहली मुलाक़ात में उसके ढंग, शरीफ चेहरा और दिलफ़रेब बेतकल्लुफ़ी से हद दर्जा प्रभावित हुईं। मिस गुप्ता ने उससे सुरेंद्र की बेइंतिहा तारीफें की थीं और इस जिक्र ने उसके दिल में सुरेंद्र से एक लगाव-सा पैदा कर दिया था। उसने उसे उन तमाम गुणों, खूबियों से विभूषित पाया, जिनका अपने शौहर में मौजूद रहना वो ज़रूरी समझती थी। ऊँचा कद, छरेहरा बदन, मुस्कराता हुआ चेहरा, मधुरभाषी, गो एक या दो मुलाक़ातें एक ऐसे अहम मामले में निर्णय करने के लिए काफी नहीं हो सकतीं, मगर सुरेंद्र ने इतनी दिनों भाड़ नहीं झोंकी थी। जब से होश-सँभाला, उसने इसी गली की खाक छानी थी। इसी ढंग की ख्वाही की थी। उसने देख लिया कि मछली चारा कुतरने लगी, अब फँसने में देर नहीं है।

रोहिणी दिन भर सुरेंद्र की तारीफें सुनती। यूनियन के एक सौ मेंबरों में से हरेक शख्स मौका देखकर सुरेंद्र का जिक्र उससे कर जाता। उनकी बीवियाँ, बहनें आतीं और उसका बखान करतीं। गर्ज सुबह से शाम तक इस तरह की बातें उसके कान में पड़ती रहतीं। यहाँ तक कि इन अमलीयात ने उस सादा बेलौस लड़की को मुहब्बत से दीवाना बना दिया। ये वशीकरण मंतर अपना काम कर गया। अब रोहिणी को दर्दे-तन्हाई की कसक महसूस होने लगी। हर वक्त अकेलेपन का ख्याल दिल को सताने लगा। मकान और बाग और सैरगाहें सूनी मालूम होने लगीं। गर्ज आँखें आठों पहर सुरेंद्र के इंतजार में रहने लगीं। एक भोला-भाला दिल छल-कपट के नजर हो गया।

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