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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग


जब ये दुश्वार मंजिल तय हो गई तो मँगनी और ब्याह में क्या देर लगती? ये दोनों रस्में बहुत सादगी और संजीदगी के साथ अदा की गईँ। जिस वक्त आचार्य विवाह-संस्कार करा रहे थे, सुरेंद्र ऐसा संजीदा और दबा हुआ नजर आता था, मानो वो इस नई जिंदगी की जिम्मेदारियों के ख्याल से दबा जाता है। जब विवाह की रस्में खत्म हुईं तो सारी सभा ने तथास्तु कहा। सिर्फ हरिमोहन की ज़बान से ये दुआ न निकली। यूनियन के मेम्बरों ने शादी की खुशी में एक जबरर्दस्त और पुरशोर महफिल सजाई। रात-भर हुल्लड़ की। शराब के मटके पर मटके खाली हो गए। खुशक़िस्मती से सुरेंद्र इसी साल बी.ए. में कामयाब हो गया। यूनियन की हैरतअंगेज कामयाबी ने सब को हैरत में डाल दिया। एक मेम्बर भी फेल न हुआ।

शादी हो गई। दोस्तों ने खूब दिल खोलकर मुबारकवाद दी। मुख्यत: मिस गुप्ता तो फूली न समाई। वो देहली से इस विवाह में शरीक होने के लिए आईं। हफ्ता-भर तक जश्न होते रहे। इसके बाद मियाँ-बीवी शिमला की सैर को रवाना हुए। यूनियन के मेंबर, गर्ल्स स्कूल का स्टाफ़ और अन्य लोग विदा करने के लिए स्टेशन तक आए। इसमें बाबू हरिमोहन भी थे। जब सब लोग रुखसत हो गए और इंजन ने चीखकर गाड़ी खींची तो हरिमोहन ने भी विदाई दी। उनकी आँखों में आँसू और दिल में अफ़सोसनाक ख्यालात भरे हुए थे। वो वहाँ खामोश गाड़ी की तरफ़ टकटकी लगाये देर तक खड़े रहे। यहाँ तक कि वो नज़रों से ओझल हो गई। उनका दिल कहता था कि ये आनंद का सफ़र नहीं, रंजोगम का सफ़र है।

महीना-भर तक रोहिणी और सुरेंद्र शिमला में रहे और इस महीने भर में उन्हें एक-दूसरे की खू-बू का पूरा अनुभव हो गया। शुरू में रोहिणी ने मिस गुप्ता को जो खत लिखे, वो इश्को-मुहब्बत के जज्वात से भरे हुए थे। मिस गुप्ता इन खूतों को बार-बार पढ़ती और सन्तुष्ट ना होतीं, मगर धीरे-धीरे इन खुतों का रंग क्लेश और निराशा की तरफ़ बढ़ने लगा। यहाँ तक कि आखिरी खत, जिसमें लिखा था- ''आज हम लोग यहाँ से लाहौर रवाना हो रहे हैं'', बहुत हृदयद्रावक था। उसमें आखिरी अल्फाज ये थे- ''प्यारी बहन, मुझे ऐसा भय होता है कि इस आनंद के स्वप्न से बहुत जल्द जागना पड़ेगा। जिस चीज को मैंने खालिस सोना समझा, वो महज चमकता हुआ पीतल निकला। अफ़सोस, मैंने अपनी मुहब्बत की दीवार बालू पर खड़ी की थी। खुदा करे, मेरे शक ग़लत हों। खुदा न करे, मेरे ये निराशापूर्ण शक सही हों, मगर प्यारी बहन, मेरा दिल बार-बार कहता है कि हालात उसको प्रमाणित करते हैं कि अस्तित्व का सर्माया खत्म हो गया। अब वाकी ज़िंदगी रोने में कटेगी।''

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