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मुल्ला नसीरुद्दीन के चुटकुले

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9836

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मुल्ला नसीरूद्दीन न केवल हँसोड़ था, बल्कि वह अच्छा हकीम भी था और सामान्य लोगों के सुख-दुःख में सदा भागीदार भी बनता था, इसलिए वह अत्यन्त लोकप्रिय था।

9

जब मुल्ला का एक दोस्त उसके घर पहुँचा तो मुल्ला एक लकड़ी के तख्ते के टुकड़े पर बड़े गौर से कुछ देख रहा था। दोस्त की समझ में मुल्ला की यह हरकत न आई तो पूछा- 'नसीरुद्दीन, तुम इस तख्ती के टुकड़े पर क्या देख रहे हो?'

लो तुम खुद ही देख लो। यों कहकर मुल्ला ने तख्ती का टुकड़ा

अपने दोस्त को पकड़ा दिया।

दोस्त ने बड़े ध्यान से उस टुकड़े को उलट-पलट देखा, मगर उसे कुछ भी दिखाई न दिया।

वह मुल्ला से बोला- 'भाई नसीरुद्दीन! मुझे तो इस लकड़ी के टुकड़े पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है।'

'मैं तो इस टुकड़े को दो साल से देख रहा हूँ मुझे भी खाक दिखाई नहीं दिया। फिर तुम्हें दो मिनट में क्या दिखाई देता?' मुल्ला ने मुस्कुराकर कहा।

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